Thursday 31 July 2014

A tribute by Ravindra Jain to Mohammad Rafiji

 Ravindra Jain

पेशानी पे शम्स आँख मे तारों की ज़िया थी,
वो कैसे बुझा जिसको ज़माने की दुआ थी ?
हाजी था नमाज़ी था बड़ा नेक था बन्दा
क्या इसके अलावा भी कोई उसकी ख़ता थी ?
नग़मे तो तेरे फिर भी सुने जाएँगे लेकिन
कुछ तेरी ज़रूरत हमें इसके भी सिवा थी।
नाखुश है खुदा अपने फ़रिश्तों से नहीं तो
धरती के फ़रिश्ते की ज़रूरत उसे क्या थी ?

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Take Care _/\_

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