Ravindra Jain
पेशानी पे शम्स आँख मे तारों की ज़िया थी,
वो कैसे बुझा जिसको ज़माने की दुआ थी ?
हाजी था नमाज़ी था बड़ा नेक था बन्दा
क्या इसके अलावा भी कोई उसकी ख़ता थी ?
नग़मे तो तेरे फिर भी सुने जाएँगे लेकिन
कुछ तेरी ज़रूरत हमें इसके भी सिवा थी।
नाखुश है खुदा अपने फ़रिश्तों से नहीं तो
धरती के फ़रिश्ते की ज़रूरत उसे क्या थी ?
Follow me on Twitter: https://twitter.com/ravindrajain99
Take Care _/\_
पेशानी पे शम्स आँख मे तारों की ज़िया थी,
वो कैसे बुझा जिसको ज़माने की दुआ थी ?
हाजी था नमाज़ी था बड़ा नेक था बन्दा
क्या इसके अलावा भी कोई उसकी ख़ता थी ?
नग़मे तो तेरे फिर भी सुने जाएँगे लेकिन
कुछ तेरी ज़रूरत हमें इसके भी सिवा थी।
नाखुश है खुदा अपने फ़रिश्तों से नहीं तो
धरती के फ़रिश्ते की ज़रूरत उसे क्या थी ?
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