Ravindra Jain
मैंने थोड़ी देर धर्म संसद की बहस सुनी, बोलनेवालों के विवाद में तर्क कम उन्माद अधिक था।सभी संत महंतों से मेरा ये निवेदन है कि इस समय यह प्रसंग अप्रासंगिक है। जहाँ तक मुझे ज्ञात है साईं बाबा ने कभी अपने आपको न अवतार कहा न संत। वे तो हमेशा कहते रहे-
सबका मालिक एक।
मैंने इसमें एक पंक्ति और जोड़ दी-
उस मालिक के दर्शन होंगे नीयत रक्खो नेक।
इस समय हमें संगठन के लिए प्रयत्न करना चाहिए ना कि विघटन के लिए। मैंने जैन होकर जहाँ एक ओर रामायण और कुरान का पद्यानुवाद किया वहीँ इस समय सामवेद का अनुवाद कर रहा हूँ। हमारी धरती से विश्व भर में शांति का सन्देश पहुंचा है। हम शांति प्रिय हैं हमें शांति से रहने दिया जाय।
धर्म के नाम पर देश टूटे नहीं,
आपसी भाईचारा सलामत रहे।
देश पर धर्म और जाति क़ुर्बान है
देश प्राणों से प्यारा सलामत रहे।।जै हिन्द---
रवीन्द्र जैन
मैंने थोड़ी देर धर्म संसद की बहस सुनी, बोलनेवालों के विवाद में तर्क कम उन्माद अधिक था।सभी संत महंतों से मेरा ये निवेदन है कि इस समय यह प्रसंग अप्रासंगिक है। जहाँ तक मुझे ज्ञात है साईं बाबा ने कभी अपने आपको न अवतार कहा न संत। वे तो हमेशा कहते रहे-
सबका मालिक एक।
मैंने इसमें एक पंक्ति और जोड़ दी-
उस मालिक के दर्शन होंगे नीयत रक्खो नेक।
इस समय हमें संगठन के लिए प्रयत्न करना चाहिए ना कि विघटन के लिए। मैंने जैन होकर जहाँ एक ओर रामायण और कुरान का पद्यानुवाद किया वहीँ इस समय सामवेद का अनुवाद कर रहा हूँ। हमारी धरती से विश्व भर में शांति का सन्देश पहुंचा है। हम शांति प्रिय हैं हमें शांति से रहने दिया जाय।
धर्म के नाम पर देश टूटे नहीं,
आपसी भाईचारा सलामत रहे।
देश पर धर्म और जाति क़ुर्बान है
देश प्राणों से प्यारा सलामत रहे।।जै हिन्द---
रवीन्द्र जैन
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