Ravindra Jain
दासता में पहले थे ज़बान पर बयान पर
पंख थे मगर बला की सख्तियाँ उड़ान पर।
गिनती पहुंची उँगलियों के आखिरी निशान तक
तब कहीं तिरंगे घ्वज को देखा आसमान पर।।
उनको क्या ख़बर कि इसका मोल क्या दिया गया
वो जिन्हें की मिल गयी स्वतंत्रता मकान पर।
उन अमर शहीदों को प्रणाम और बधाइयाँ
देश को दिला गए जो मुक्ति खेल जान पर।।
दासता में पहले थे ज़बान पर बयान पर
पंख थे मगर बला की सख्तियाँ उड़ान पर।
गिनती पहुंची उँगलियों के आखिरी निशान तक
तब कहीं तिरंगे घ्वज को देखा आसमान पर।।
उनको क्या ख़बर कि इसका मोल क्या दिया गया
वो जिन्हें की मिल गयी स्वतंत्रता मकान पर।
उन अमर शहीदों को प्रणाम और बधाइयाँ
देश को दिला गए जो मुक्ति खेल जान पर।।
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